जब मिलना ही नहीं तो मिले ही क्यों साथ चार कदम चलना नहीं तो सफर मे चले ही क्यों आजमाना भर था अगर तो थोड़ा रुकते न अपने पसंद नापसंद बताते तो मौका देख आजमाते न ऐसे कोई थोड़े छोड़ जता है राह मे अपनी ख्वाइश बताते तो ये क्या तरीका है निकल लेने का दो चार तोहमते झूठा ही सही लगाते तो अब देखो न तेरी समझ नहीं पाता तुझसे गिला करू या ख़्वाबों मे मिला करू जाते जाते कोई नुस्खा बताते तो चलो अच्छा है तू ख़ुश है मै भी खुश रह लूंगा तेरे बगैर था पहले भी दुबारा ये सोच कर जी लूंगा हां जी लूंगा ©ranjit Kumar rathour मिले ही क्यों