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जीवन क़े उल्लास मे कहाँ पड़ा था शून्य जो अब

जीवन क़े  उल्लास  मे   कहाँ पड़ा था  शून्य 
जो   अब  जाकर  पसरा हैँ  जब  अंधेरा 
फैला  हुआ हैँ   चारो तरफ
और   अंधड़  उठ  रहे  हैँ   हवाओ मे 
उम्र का  स्वर्ण  युग तो  बीत  चुका  अब 
और स्वर्ण धूल  रही   शेष   शून्य  शोधन मे 
अब कहा  खोजू  मै  खुद को 
विकासमान  विश्व  क़े  जीवंत  प्रवाह   मे शून्य  की  खोज
जीवन क़े  उल्लास  मे   कहाँ पड़ा था  शून्य 
जो   अब  जाकर  पसरा हैँ  जब  अंधेरा 
फैला  हुआ हैँ   चारो तरफ
और   अंधड़  उठ  रहे  हैँ   हवाओ मे 
उम्र का  स्वर्ण  युग तो  बीत  चुका  अब 
और स्वर्ण धूल  रही   शेष   शून्य  शोधन मे 
अब कहा  खोजू  मै  खुद को 
विकासमान  विश्व  क़े  जीवंत  प्रवाह   मे शून्य  की  खोज

शून्य की खोज