अज़ब पागल सी लड़की थी मुझे क्यू प्यार करती थी? उसे मुझमे क्या दिखता था मुझे नेत्रहीन लगती थी अज़ब पागल सी लड़की थी ! अक्सर खयालो में,अब उसकी याद आती है इन्ही शामो में,मेरे कानों में,अक्सर वो कहती थी तुम भी मुझसे इश्क़ करलो ना कतरो से मुझे भरलो ना मुझे इक ज़िद ने जकड़ी थी मैंने अपने मंज़िल की,सीढ़िया जो पकड़ी थी अज़ब पागल सी लड़की थी ! बातों बातों में रोती थी मुझे आँशुओ से भिगोती थी अब कभी कभी,मैं भी रोता हु उसे ढूंढता फिरता हु कभी आवाज़ भी जो दु उसे लगता है गले ने जंग पकड़ी थी अज़ब पागल सी लड़की थी! अज़ब पागल सी!