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इश्क़ में लिखे ख़त, झोंका हवा का। वो यादें पुरानी

 इश्क़ में लिखे ख़त, झोंका हवा का।
वो यादें पुरानी ,वो तिलिस्म वफ़ा का।

रातों को जाग जाग,लिखते रहे जो,
तारीफ के काबिल, हुस्न दिलरुबा का।

बिखर जाती है अब भी खुशबू चारसू
खुला रह जाए दरीचा जो मकां का।

बातों-बातों में  जो ठग  गया था हमें
पंख बांध  सपना दिखाया आस्मां का।

हसीं कसमें और वादे ,सब इन खतों में 
बसा है  इनमें चेहरा ,इक मेहरबां का।

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