मुझे कमजोर समझने की भूल न कर, मैं शांत हूँ, मगर लाचार नहीं। जो सह लिया, वो सब्र था मेरा, पर हर घाव अब बेक़रार नहीं। मेरी खामोशी को मेरी हार न मान, मैं लहर हूँ, मगर किनारा नहीं। जो आज ठहरा हूँ, तो वक़्त की चाल है, पर जब चलूँगा, तो सहारा नहीं। बदले की आग को मत हवा दे, मैं चिंगारी हूँ, पर राख नहीं। जो जल गया, वो खाक हुआ, पर मैं वो हूँ, जो बुझा नहीं। ©नवनीत ठाकुर #नवनीत_ठाकुर