आज मिलना था तुमसे शाम की चाय पर पहली मुलाकात थी ना ना तुमने मुझे देखा था और ना मैंने तुम्हे बस कमरे के आईने ने देखा था तुम्हें भी और मुझे भी आज खत्म होने वाली थी कुछ अनकही बातो का सिलसिला जी भर कर बतियाना था ना तुमसे चाय के ठंडी होने तक तुम भी तो लगा रही थी अपने आँखों में काजल ताकि नजर ना लगे किसी की तुम्हे भी और मुझे भी पर ना जाने क्यों ये बादल सुबह से बरसा रहा है क्या ये भी अपना इश्क किसी से फरमा रहा है ये आज शायद थमे ना देखो तुम छाता ले कर निकलना वरना ये बादल भींगा देगा तुम्हे भी और मुझे भी----अभिषेक राजहंस तुम्हे भी और मुझे भी..