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शाख पे झूम रहा था एक पत्ता अधमरा सा, सुन रहा था हू

शाख पे झूम रहा था एक पत्ता अधमरा सा,
सुन रहा था हूक मौत की,था वो डरा-डरा सा,
मर जायेगा छुआ किसी ने उसको अगर ज़रा सा,
मैं ख़ुदा तो नहीं,आँख थी नम मेरी, 
था मन मेरा भी भरा सा,

रिम्मी बेदी नज़र

©NAZAR
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