सुभंगी छन्द :- ये जग माया , मन भरमाया , हम है भटके , गिरिधारी । हमें बचाओ , राह दिखाओ , ये जग छलता , हितकारी ।। जो है अपना , लगता सपना , किसे पुकारूँ , बनवारी । आप हमारा , एक सहारा इतना जानूं , भंडारी ।। निंद्रा त्यागो , अब तो जागो , भोर सुहानी , है आई । उठ जा प्यारे , राज दुलारे , दही जलेबी , माँ लाई ।। आँखें खोलो , मुँह को धो लो , सूरज ने ली , अँगडाई । चंचल चिडिय़ा , लगती गुडिय़ा , चूँ चूँ करती , है आई ।। १५/१२/२०२३ - महेन्द्र सिंह प्रखर ©MAHENDRA SINGH PRAKHAR सुभंगी छन्द :- ये जग माया , मन भरमाया , हम है भटके , गिरिधारी । हमें बचाओ , राह दिखाओ , ये जग छलता , हितकारी ।। जो है अपना , लगता सपना , किसे पुकारूँ , बनवारी ।