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बाउजी, पिताजी, पापा जी ,पापा ने कब डैड का रूप ले ल

बाउजी, पिताजी, पापा जी ,पापा ने कब डैड का रूप ले लिया समझ में ही नहीं आया ,बड़े बुजुर्गों ने बड़ी अच्छी बात कही है। यह सोलह सत्रह साल की उम्र ही होती है जो लड़के को बनाती है या फिर बिगाड़ देती है। सोलह सत्रह साल की उम्र से पहले बाबू जी ने बहुत रेला था। कभी क्रिकेट खेलने के नाम पर तो कभी पढ़ने के नाम पर कभी पड़ोसी को मार कर आने के नाम पर तो कभी रामनवमी के जुलूस में सबसे आगे जय श्रीराम के नारे लगाने के नाम पर और यह मार कहीं ना कहीं लौंडे को अपने बाबूजी से दूर और अपने माई के करीब ले गया था। लड़कियां अक्सर कहती है "माय पापा इस माय हीरो" लेकिन लौंडे कभी नहीं पाते हैं इसलिए संतोष करके कह देते हैं “मेरी मां ही मेरी जन्नत है।"

 समय धीरे-धीरे आगे बढ़ रहा था और बाबूजी की उंगलिया पकड़कर चलने वाला लौंडा आजकल लड़कियों की उंगलियां पकड़कर चलना सीख रहा था दौर अजीब था बात 2009- 10 की है, लड़के ने 16 साल की उम्र में कदम रख लिया है कल तक जो अपने बाबूजी को अपना सुपर हीरो मानता था आजकल उसके बाबूजी उसके लिए मात्र एटीएम मशीन बन गए थे, मोबाइल का दौर धीरे-धीरे अपने चरम पर था। लौंडे के पास भी नोकिया 2600 का रंगीन दुनिया था और उसके बाबू जी के पास नोकिया 1100 की सादी दुनिया बिल्कुल उनके चरित्र की तरह सफ़ेद, मन की तरह निछल,, लड़के के मोबाइल रिचार्ज से लेकर उसके चड्डी का खर्चा उठाने वाले उसके बाबूजी धीरे धीरे बाबूजी कम बैंक मैनेजर ज्यादा बन रहें थे, 24 इंच की साइकिल पर कैची चला चला कर बड़ा हुआ लौंडा धीरे-धीरे पल्सर के ख्वाब देखने लगा था । हालांकि ख्वाब तो लौंडे के बुलेट के भी थे लेकिन पतला दुबला होने की वजह से बुलेट को थोड़ी देर के लिए साइड में रखा गया और पल्सर में ही संतोष कर लिया गया, खैर लड़का दूर जा रहा था और बाबूजी दूर से ही लड़के को देखकर बस संतोष कर ले रहे थे कि लड़का बन रहा था या बिगड़ रहा था यह तो स्वयं लड़का भी नहीं जानता था । खैर पढ़ाई लिखाई करने के बाद नौकरी और नौकरी के बाद यह प्रदेश की जिंदगी, कहीं ना कहीं 16 साल से 26 साल तक के इन 10 सालों में बाबूजी से बहुत दूर हो गए। इन 10 सालों में जो मेरे सुपर हीरो हुआ करते थे आज के तारीख में महज रिश्ते में तब्दील हो गए लेकिन एक दिन अचानक से फिर तबीयत खराब होती है और पूरी रात मां का नाम ना एक बार भी नहीं लेता हूं,और पूरी रात रोते हुए कहता हूं कि पापा बहुत दर्द हो रहा है, उस दिन एहसास हुआ कि हम तो घर में ही पापा से दूर हुए थे पापा से दूर तो हम कभी हो ही नहीं सकते हैं । लौंडे के लिए उसके बाप का होना बहुत जरूरी है। जिंदगी जीने के लिए जिंदगी वह समझने के लिए एक उम्र में आने के बाद बाप से अच्छा दोस्त कोई और नहीं होता, धीरे धीरे मैं फिर से उनके करीब जाने लगा आजकल मैं उन्हें कॉल भी करता हूं घंटों उनसे बात करता हूं जब कुछ बातें करने के लिए नहीं होती हैं तो उनसे उनके खेत का हाल-चाल पूछ लेता हूं ,गाय कैसी है? यही पूछ लेता हूं , इस बार धान कैसा हुआ? यह पूछ लेता हूं, अब बाबूजी हमें कभी कभार बेटा कह देते हैं हेलो जिस दिन हमें बेटा कहते हैं साला हम नहा भी लेते हैं।

लेकिन जब हम घर से दूर होते है तो बाबू जी रोज हमारे कमरे में आज भी जाकर उसके सर्टिफिकेट को गौर से निहारते है, क्रिकेट में लाए हमारे ट्रॉफी और टूर्नामेंट में जीते सर्टिफिकेट जिस पर वक्त ने धूल जमा दिया था, बाऊ जी आज भी कमरे में जाकर कभी-कभी उसे साफ कर दिया करते हैं, आज भी मेरे पुराने कपड़े प्रेस करा कर अलमारी में रख दिया करते थे बाबूजी अब जल्दी कॉल नहीं करते थे इसलिए बाबूजी माई को कॉल करके पूछा करते है कि बचवा कैसा है ,कोई दिक्कत तो नहीं है ना, बाबूजी का प्यार कभी समझ में नहीं आया, खैर इंजीनियरिंग पास करते करते डिग्री तो हाथ में थी लेकिन बाबू जी से दूरी धीरे-धीरे बन चुकी थी नौकरी मिली पैसे मिलने लगे और इस पैसे के साथ मिला तो घमंड लेकिन उस नौकरी की पहली तनख्वाह से खरीदे हुए बाबूजी के लिए वह कोट पैंट बाबू जी ने आज तक संभाल कर रखा है, नौकरी में आने के बाद पता चला जब खुद के लिए समय नहीं मिलता है, तब समझ में आया कि बाबूजी कैसे मैनेज करते होंगे। 8 घंटा काम के बाद 8 घंटा ओवरटाइम करना वह भी बस इसलिए क्योंकि उनका बेटा इंजीनियरिंग कर रहा है, बाबूजी कैसे मैनेज करते होंगे? 16 घंटे ड्यूटी करके आने के बाद हमें बाजार लेकर जाना बाबूजी कैसे मैनेज करते होंगे? उनके चेहरे पर कभी उदासी देखी नहीं । आज भी जब मैंने जबरदस्ती उन्हें घर पर बैठा दिया है तो अक्सर शाम को साफ कपड़े पहन कर बाजार जाकर पान खाया करते हैं और पान खाते वक्त अपने दोस्तों से 15 मिनट की बात मे 14 मिनट सिर्फ मेरे बारे में बातें करते हैं, मेरा लड़का यह करता है , मेरा लड़का वह करता है,मेरा लड़का बहुत मेहनत करता है , पढ़ने में भी बहुत तेज था,ये है,वो है मेरा लड़का ऐसा है वैसा है,खैर और भी बहुत कुछ...!

मां से हमारा रिश्ता दुनिया के सामने जगजाहिर है लेकिन बाप हमारी मोहब्बत होते हैं,साला हम डर के मारे कभी कह नहीं पाते हैं..!

कुछ खास नही है बे, बस बाऊ जी की याद आ गई 

अंकित

©Ansh Jalandra
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