ज़रूरत ही क्या है, किसी के इंतजार में ये हसीन रातें गंवाने की?? ज़हन से भी आवाज़ आयी है, मोहब्बत ख़ुद से कर जाने की.. ज़रूरत ही क्या है, बेवजह किसी को याद कर कर मुस्कराने की?? ज़हन से भी आवाज़ आयी है, पनाह ख़ुदी के दिल में ख़ुद को दे जाने की.. ज़रूरत ही क्या है, किसी और की आँखों में ख़ुद को तलाशने की?? ज़हन से भी आवाज़ आयी है, धड़कने ख़ुद की महसूस कर जाने की.. ज़रूरत ही क्या है, इकतरफ़ा आशिकी का ज़ुल्म सह जाने की?? ज़हन से भी आवाज़ आयी है, थोड़ा सा मतलबी हो जाने की.. ज़रूरत ही क्या है, झूठी उम्मीद भरे ख्वाबों में उसकी राह ताकते रह जाने की ?? ज़हन से भी आवाज़ आयी, मुलाकातें आईने से कर जाने की.. ज़रूरत ही क्या है, गुनाहगार तन्हाइयों का खुद को बताने की?? ज़हन से भी आवाज़ आयी है, ये गुमनामी भरी शाम ख़ुद के नाम कर जाने की... @amit_vashisht_ #self_love #sunrays of the new day #poem #shayari