Nojoto: Largest Storytelling Platform

ज़रा सोचूँ दिल-ए-जाना कैसा होगा तेरा लौट कर आना कै

 ज़रा सोचूँ दिल-ए-जाना कैसा होगा
तेरा लौट कर आना कैसा होगा

पलकोंं की कोर में जो
दूरीआें की मिट्टी जमी है
सुकून के आँसू उसे ऐसे धोएँगे
जैसे बारिश में पत्तीआँ धुली हों
जैसे शाम के धुएँ में
 ज़रा सोचूँ दिल-ए-जाना कैसा होगा
तेरा लौट कर आना कैसा होगा

पलकोंं की कोर में जो
दूरीआें की मिट्टी जमी है
सुकून के आँसू उसे ऐसे धोएँगे
जैसे बारिश में पत्तीआँ धुली हों
जैसे शाम के धुएँ में

ज़रा सोचूँ दिल-ए-जाना कैसा होगा तेरा लौट कर आना कैसा होगा पलकोंं की कोर में जो दूरीआें की मिट्टी जमी है सुकून के आँसू उसे ऐसे धोएँगे जैसे बारिश में पत्तीआँ धुली हों जैसे शाम के धुएँ में #ਕਵਿਤਾ