हां ! बुरा हो गया हूं मैं, यूंही नहीं जलती होलिका हर बार बस कुछ बुराइयों को जलाने को , हर बार एक अच्छाई भी जल जाती है , हर बार बदलता है साल और कुछ बरसों की सीलन और पुरानी हो जाती है , अब पुराने कमरे में जाने का जी नहीं करता इसलिए भी कि वन्हा लिख छोड़ा है मैंने "हर कोई बुरा नहीं होता" हां बुरा हो गया हूं मैं , हर बार होलिका यूंही नहीं जलती सिर्फ त्योहार मानने को , हर बार एक नया रंग दिख जाता है जिस ने ताउम्र भरोसे का वादा किया । यूंही नहीं जलती होलिका हर बार.... ©sukhwant kumar saket #होलिका #दहन #2021 #होली #पोस्ट #poem #राइटर #मैं