जब अचानक सर उठाने लगती हैँ यादे पीड़ाये सघन हो जाती हैँ जैसे दूर गगन मे काले बादलो की बीच बिजली कौंध जाती फिर नभ ले नीलेपन की गरिमा और गहराई और बढ़ जाती हैँ मन कुछ कहना चाहता हैँ और ह्रदय की धड़कन भी बढ़ जाती हैँ उफनते लगता हैँ अश्रुओ का सिंधु कोष और अविरल जलधारा बह जाती हैँ क्यों आती हैँ यादे कहा से सहसा आ धमकती हैँ कदाचित जब ह्रदय की बंद गुफाये सांस लेने हेतु द्वार अपने खोल देती हैँ............... तब कहीं ये यादे सज संवर कर बाहर आने की धृष्टता कर बैठती हैँ यादो का उदगम.......