धीरे धीरे आपसे , हुआ हमें भी प्यार । आज प्रीत मैं आपकी , करती हूँ स्वीकार ।। प्यार आपसे ही हुआ , करता हूँ स्वीकार । फिर बोलो किस बात की , करती हो तकरार ।। लेकर हाथ गुलाब मैं , झुका रहा हूँ शीश , करो प्रीत काबूल अब , बैठा है वागीश ।। आज प्रखर की प्रीत को , कर लो तुम स्वीकार । द्वार तिहारे जो खडा , करता है मनुहार ।। महेन्द्र सिंह प्रखर ©MAHENDRA SINGH PRAKHAR धीरे धीरे आपसे , हुआ हमें भी प्यार । आज प्रीत मैं आपकी , करती हूँ स्वीकार ।। प्यार आपसे ही हुआ , करता हूँ स्वीकार । फिर बोलो किस बात की , करती हो तकरार ।। लेकर हाथ गुलाब मैं , झुका रहा हूँ शीश , करो प्रीत काबूल अब , बैठा है वागीश ।।