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मन मित्र है,मन शत्रु है,इससे बढ़कर वरदान नही। विष-अ

मन मित्र है,मन शत्रु है,इससे बढ़कर वरदान नही।
विष-अमृत दोनों देता है,करते क्यों कल्याण नही।।

©Shubham Bhardwaj
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