लम्हो में दर्द के पहाड़ खड़े थे, जो मेरे अपने थे मेरे साथ खड़े थे.. दे दिया था वाजिब जवाब मैंने कल को, आज फिर मुँह उठाये चंद सवालात खड़े थे.. जंगलो से गुजरा तो ये एहसास हुआ, काम के दरख्त झुके हुये बाकी सिर तान खड़े थे.. उसका शुक्रिया जो उसने मुझे चुना था, मैं था ही क्या मेरे जैसे हजार खड़े थे.. जिनको जाना था छोड़कर वो चले गये 'अभिषेक', हम मोहब्बत की कचहरी में वफादार खड़े थे✒ #victim