मर्दों की लड़ाई में माँ बहने पिस जाती है , बड़े ही अभद्र अपशब्दों से बहन बेटी तक पहुंच जाते है , न वक़्त कल सुधरा था न आज बदला है , माँ बहन के नाम पर सारे मर्दों का मुँह सिला है , धरने पर बैठी औरत , माना की तेरी अपनी नहीं , पर खुद के अहम के लिए , उसके चरित्र को ललकारना , तेरी मर्यादा तो नहीं , कहता है खुद को देशभक्त वो , नजरों में उनकी माँ बेटियों के लिए तनिक भी सम्मान नहीं , क्या हिन्दू क्या मुस्लिम , सुन जरा औरत के बिना तेरा कोई वजूद नहीं , तू मर्द किस काम का जो निगाहों में तेरी औरत के लिए इज्जत नहीं, नोच लेता है छातियां , उसको ही तवायफ पुकारता , जिसके आँचल की छाँव में पला , उसको ही गलियों से नवाजता , वाह रे ये दोगलापन तेरा , किस बात पर तुझको गुमान है , रात के अँधेरे में जो करते औरतों का शिकार है, घर में जो न टीकते कदम एक पल को तेरे , न हो औरत तो वो घर बन जाये शमशान से , जानता सब फिर न जाने हर दोष मढ़ता , क्यों औरत के नाम पे , रुक जा , ठहर या संभाल जा , याद रख कमजोर नहीं औरत जो तेरी बद्सलूकियाँ सहती है , वो चुप है क्यूंकि वो माँ होती है | SONAMKURIL औरत ,माँ और सम्मान