मैं भी ऐसा होना चाहता हूँ, जिसमें दर्द न हो, किसी के कुछ भी कहे जाने पर रंज ना हो, रंज ना हो, दंज न हो, मन में कोई भंज ना हो, मैं भी ऐसा होना चाहता हूँ, मैं भी ऐसा होना चाहता हूँ, जिसमें मन में मेरे कोई अनर्थ न हो, अर्थ हो तो व्यर्थ न हो, हृदय दयारहित रहे, अश्रु से मुक्त रहे, मैं भी ऐसा होना चाहता हूँ, मैं भी ऐसा होना चाहता हूँ, जिसमें मन कठोर-काठ करूँ, क्रोध ज्वार भाट करूँ, क्या मैं ऐसा बन जाऊँ, क्या मैं ऐसा बन जाऊँ। अंत: शब्द