जल।। जल ही जीवन बस कहते रहते, नलों से पानी बहते रहते। विकट हुआ ये समय बड़ा है, जलसंकट नरभक्षी बने खड़ा है। सोचो जरा तुम खयाल करो, अपनी आदत की पड़ताल करो। कहाँ घड़ा है, कहाँ है पानी, कौआ कंकड़ बस डाल रहा। सब मिल बोलो, मुझे बताओ, किसकी करनी, क्यूँ ये हाल रहा। अब पानी नलों में सूख रहे, आंखों से बहनेवाले हैं। हमे क्या चिंता, फर्क पड़ा क्या, हम चांद पे रहनेवाले हैं। कुछ अच्छा हो न हो, जलसंकट समानता लाएगी। अमीरी गरीबी लिए कटोरा, सड़कों पर ही पायी जाएगी। ये महल अटारी धरे रहेंगे, जलबिन जी क्या पाओगे। आज समय है सोच बनाओ, पैसा ये पी क्या पाओगे। बून्द बून्द को तरसी दुनिया, तुम सड़कों पे पानी छिड़कते हो। जो सच कह दूं आज जरा, गुस्सा हो मुझपे बिगड़ते हो। धुली सड़क और धुली है गाड़ी, कब मन को धो पाओगे। मेरी मर्ज़ी मैं जो भी करूँ, कब इससे ऊपर हो पाओगे। चलो मिलाओ हाथ जरा तुम, आओ तो मेरे साथ जरा तुम। चलो कोई जुगत लगाते हैं, पानी को चल के बचाते हैं। चलो साथ तुम मेरे भाई, भविष्य को चल के बचाते हैं। ©रजनीश "स्वछंद" जल।। जल ही जीवन बस कहते रहते, नलों से पानी बहते रहते। विकट हुआ ये समय बड़ा है, जलसंकट नरभक्षी बने खड़ा है। सोचो जरा तुम खयाल करो, अपनी आदत की पड़ताल करो।