(दूरी) हिमाकत वो दूर खड़ा किसी अनजान शहर मैं गांव ठहरी उसका पता कैसे लगाऊं रे.. वता मेरी कुछ इक पाप की ही सज़ा है मगर आंच में वो क्यूं जले रे.. फ़कत वो अंदर अंदर टूटा पड़ा है उस ज़ख्मी की मरहम कैसे बनूं रे.. सोचती हूं दहलीज खटखटा आऊं मगर उसके घराने का ठिकाना कहां से लाऊं रे.. सब नीहार रहे भगवान् का करिश्मा है महबूब महबूब से दूर मैं और क्या मांगू रे.. वो चांद तारों का राजा सेंकड़ों दूर मैं रात की रानी जूगनू सी बराबरी कैसे करूं रे.. ©Payal Pathak #हार्ट_ब्रोकेन_मेन