मेरी आँखों को आँसू छिपाना कहाँ आया मेरी रात सिसकियों में कट गयी, मुझे रोना कहाँ आया अक्सर वो प्यार करना भूल जाया करती थी मैं ठहरा शायर मुझे मोहब्बत छिपाना कहाँ आया शाम होते ही वो रोज़ ट्यूशन जाया करती हैं मुझे लफंगों की तरह उसका पिछा करना कहाँ आया मेरे चर्चे उसके घर से ज्यादा उसके सहेलियों के पास हैं मुझे एक उसके सिवा किसी और से बात करना कहाँ आया मैं रोज़ अपनी हाथों की लकीरों में तुझे देखता हूँ मुझे अपनी ही हाथों की लकीरें पढ़ना कहाँ आया तुझसे बात करने के लिए मुझे दूसरों को फोन लगाना पड़ता हैं तेरे पास फोन रहते हुए भी, मुझे फोन लगाना कहाँ आया prem_nirala_ मेरी आँखों को आँसू छिपाना कहाँ आया मेरी रात सिसकियों में कट गयी, मुझे रोना कहाँ आया अक्सर वो प्यार करना भूल जाया करती थी मैं ठहरा शायर मुझे मोहब्बत छिपाना कहाँ आया शाम होते ही वो रोज़ ट्यूशन जाया करती हैं मुझे लफंगों की तरह उसका पिछा करना कहाँ आया