आज तड़के ठंड में सड़क किनारे ठिठुर रहा था... एक नन्हा सा भारत सायद वो आर्थिक आतंक से... कुछ अनकहे शब्दों के जरिये सुगबुगाहट कर रहा था... सायद उसे चाह न थी नए घर की नीवं लगाने की... तभी वहीं बचपन वाला आशियाना साथ लाए बैठा था... जी रहा था वो अपनी अलग ही धुन में... सायद वो हमें जीना सीखा रहा था... निरे भाव थे उसके भोले मन में... सायद वो खुद को भावों की सरिता में बहा रहा था... न रात थी उसके मासूम से भावों में.. वो उजालों में भी निवाले को पछताएगा जा रहा था.. #गजानन्द_शर्मा #निर्बाध भूखा भारत #निर्बाध