रातें.... अपना धर्म खो देता है जगी हुई आशिकों के संवाद के शब्द खोकर बचीं हुई नींदों को थाम कर, और.... उसी सनसनाहट में खुद को देखता है रोने के दो आंसू पकड़े संघर्ष के माटी में लगाता हूं तब भी.... बचा कुछ रह जाता है कल के आंखों में... आज के लिए... उत्कर्ष की रातों के लिए......!! ©Dev Rishi #Music