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हर क्षण कोई घटना घटती है,कभी चाही,कभी अनचाही, नित्

हर क्षण कोई घटना घटती है,कभी चाही,कभी अनचाही,
नित्य अपनी छाप छोड़ती, रंग भरी, कभी भरी स्याही।

स्मृति के ये रंग, कुछ तो उड़ जाते हैं, कुछ धुल जाते हैं,
मगर कुछ ऐसे भी हैं,जो बदरंग हो कर भी,रह ही जाते हैं।

वसंत बयार बौरा देती है,जब सुमन सौंदर्य के खिल जाते हैं,
बह जाती मधुरता क्षार हो कर,फूल धूल में जब मिल जाते हैं।

होगी जितनी खुशी मिलन की,चुभेगी उतनी घड़ी विरह की,
जितनी होगी आसक्ति प्रिय से,असह्य औरों से उसकी नजदीकी।

प्रीत ही में बीज द्वेष का,घनिष्ठता ईर्ष्या की जननी,
क्रम से आती जाती दोनों,तृप्ति-तृष्णा,चिर सखा-संगिनी।

करता जब यह मन प्रतिवाद,जानें कैसे,है वाद या विवाद,
हर्ष-विषाद है कल की प्रतिक्रिया,या नए संस्कार की शुरूआत। हर क्षण कोई घटना घटती है,
कभी चाही,कभी अनचाही,
नित्य अपनी छाप छोड़ती,
रंग भरी,कभी भरी स्याही।
स्मृति के ये रंग, कुछ तो
उड़ जाते हैं, कुछ धुल जाते हैं,
मगर कुछ ऐसे भी हैं,जो बदरंग
हो कर भी,रह ही जाते हैं।
हर क्षण कोई घटना घटती है,कभी चाही,कभी अनचाही,
नित्य अपनी छाप छोड़ती, रंग भरी, कभी भरी स्याही।

स्मृति के ये रंग, कुछ तो उड़ जाते हैं, कुछ धुल जाते हैं,
मगर कुछ ऐसे भी हैं,जो बदरंग हो कर भी,रह ही जाते हैं।

वसंत बयार बौरा देती है,जब सुमन सौंदर्य के खिल जाते हैं,
बह जाती मधुरता क्षार हो कर,फूल धूल में जब मिल जाते हैं।

होगी जितनी खुशी मिलन की,चुभेगी उतनी घड़ी विरह की,
जितनी होगी आसक्ति प्रिय से,असह्य औरों से उसकी नजदीकी।

प्रीत ही में बीज द्वेष का,घनिष्ठता ईर्ष्या की जननी,
क्रम से आती जाती दोनों,तृप्ति-तृष्णा,चिर सखा-संगिनी।

करता जब यह मन प्रतिवाद,जानें कैसे,है वाद या विवाद,
हर्ष-विषाद है कल की प्रतिक्रिया,या नए संस्कार की शुरूआत। हर क्षण कोई घटना घटती है,
कभी चाही,कभी अनचाही,
नित्य अपनी छाप छोड़ती,
रंग भरी,कभी भरी स्याही।
स्मृति के ये रंग, कुछ तो
उड़ जाते हैं, कुछ धुल जाते हैं,
मगर कुछ ऐसे भी हैं,जो बदरंग
हो कर भी,रह ही जाते हैं।

हर क्षण कोई घटना घटती है, कभी चाही,कभी अनचाही, नित्य अपनी छाप छोड़ती, रंग भरी,कभी भरी स्याही। स्मृति के ये रंग, कुछ तो उड़ जाते हैं, कुछ धुल जाते हैं, मगर कुछ ऐसे भी हैं,जो बदरंग हो कर भी,रह ही जाते हैं। #Time #yqbaba #Chain #yqdidi #impression #Possession