प्रकृति में कुदरती बदलाव होता ही रहता है पतझड़ में पत्ते फूल सब झड़ जाते हैं और फिर बसंत आता है नई नई कोपलों के साथ फिर फूल खिलते हैं शाखाओं पर फिर पक्षियों का कलरव सुनाई देता है बस यही जीव के साथ होता है एक शरीर से दूसरे शरीर का चोला धारण करता है अपने कर्मों के अनुसार जहां उसने यात्रा खत्म की थी वहीं से फिर शुरू करता है अपने पीछे छूट गईं ख्वाहिशों के साथ फिर से बटोरने लगता है कंकड़ पत्थर और बांध लेता है गठरी ये सिलसिला चलता रहता है अनवरत जब तक हल्की सी भी कहीं कोई चाह छूट गई होती है ©Kusum Sharma #कुसुम #Nojoto #writer #writerscommunity #thought #hills