सर्वधर्मान्परित्यज्य मामेकं शरणं व्रज| अहं त्वा सर्वपापेभ्यो मोक्षयिष्यामि मा शुच:|| अर्थात सम्पूर्ण धर्मों का आश्रय छोड़कर तू केवल मेरी शरण में आ जा। मैं तुझे सम्पूर्ण पापों से मुक्त कर दूंगा अंतर्यामी रूप से परमात्मा ही गुरु हैं और हम जीव रूप से शिष्य हैं ||श्रीमद्भगवद्गीता अध्याय१८-श्लोक 66 || सारी सृष्टि बनाई उसी का एक हिस्सा हूँ। मेरी लेखनी ही मेरी पहचान है Married सभी रचनायें स्वरचित हैं 🙇
Kusum Sharma
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