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वक़्त का इंतज़ार करिए कुछ ऐसा मंज़र भी दिख जायेगा,

वक़्त का इंतज़ार करिए कुछ ऐसा मंज़र भी दिख जायेगा,
लहू लहू को काटेगा बस अंधेरा ही नज़र आएगा;
जीने वाले माँगेगे दो बूँद पानी के पर कोई अपना नहीं नज़र आएगा,
प्यासी ममता की झोली में आसुओं का घड़ा बन जाएगा;

जो बोए बीज नफ़रत के तो क्या फसल कटायेगा
भाई भाई को मारे माँ का आंचल सुना हो जाएगा,
घड़ी घड़ी दूर दूर एक दिया टिम टिमायेगा,
समशान का धुआँ गगन को मठमैला कर जाएगा;

फिर सोच यह मानव पछताएगा
जब वक़्त था तो फिर तू क्यों नहीं रोक पाया था,
लागी आग बस्ती में तो आशियाना उजड़ जायेगा
तू खाली हाथ आया था और खाली हाथ जायेगा;

पछतावों का यह समंदर उबल आयेगा
क्या मानवता का दामन छीन भिन्न हो जाएगा,
वक़्त का इंतेज़ार करिए कुछ ऐसा मंज़र भी आयेगा
अभी भी जाग जा मानव वरना बहुत पछताएगा ।।

©navroop singh
  #Manzar

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