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उबड़-खाबड़ सड़क दिखी आज, उसमें अलग हुए कंकड़ो के

उबड़-खाबड़ सड़क दिखी आज, 
उसमें अलग हुए कंकड़ो के खालीपन दिखे, 
जहाँ से अक्सर गुज़रते हुए क़दम लड़खड़ा जाते हैं,
ना जाने कितनी दफा मैं और हाँ आपभी गिरते- गिरते बचे हैं। 
सब कुछ ही तो नज़र है,पर नज़रंदाज़ करने की आदत हो गई है, 
कहते हैं, किसको कहें,कहाँ रोएँ-कहाँ गायें,किधर ख़ुद को ले जायें,
लगता है जैसे कोई अंधेरी सीढी चढ़ रहे हों,
जहाँ सामने कौन है,पता नहीं, 
अचानक से आकर कोई भी ठोकर मारता है, 
हर तकलीफ़ से झूझना पड़ता है,
कहना पड़ता है, ईटस ओके,
कैसे कब हो जाओगे विद्रोही,
समझे हो क्या ये अब तक, 
हर दिन की अपनी परेशानी है, 
क्या है इसके पीछे वजह कहाँ किसी को जानने की तलब आई है। 
बचपन,भूख से बिलख रही, 
जवानी,बेरोज़गारी से झुलस रही, 
बुढ़ापा,बेसहारा मर रही है,
लाश मिलती है,तो वारिस नहीं,
कहाँ मुकदमा चलेगा,हूँ ,बताओ? 
किसको खोजोगे,किससे माँग करोगे? 
कौन ठीक करेगा? 
वो जिसे तुमने ठिका दिया है सब कुछ का, 
चलो कम से कम ख़ुद पर खूब हँस लो अब, 
तुम आज भी अंधे हो,
युग चांद पर चमकना चाहता है,
लेकिन तुम अभी भी धरती में अपनी लकीर खींचने में लगे हो। 
खैर,तुमको दिखे ही कहाँ हैं, 
अलग हुए कंकड़ो के खालीपन।
वो तो मैंने देखा तो मेरा मसला था। 
                  ✍ mahfuz मी पोस्ट
उबड़-खाबड़ सड़क दिखी आज, 
उसमें अलग हुए कंकड़ो के खालीपन दिखे, 
जहाँ से अक्सर गुज़रते हुए क़दम लड़खड़ा जाते हैं,
ना जाने कितनी दफा मैं और हाँ आपभी गिरते- गिरते बचे हैं। 
सब कुछ ही तो नज़र है,पर नज़रंदाज़ करने की आदत हो गई है, 
कहते हैं, किसको कहें,कहाँ रोएँ-कहाँ गायें,किधर ख़ुद को ले जायें,
लगता है जैसे कोई अंधेरी सीढी चढ़ रहे हों,
जहाँ सामने कौन है,पता नहीं, 
अचानक से आकर कोई भी ठोकर मारता है, 
हर तकलीफ़ से झूझना पड़ता है,
कहना पड़ता है, ईटस ओके,
कैसे कब हो जाओगे विद्रोही,
समझे हो क्या ये अब तक, 
हर दिन की अपनी परेशानी है, 
क्या है इसके पीछे वजह कहाँ किसी को जानने की तलब आई है। 
बचपन,भूख से बिलख रही, 
जवानी,बेरोज़गारी से झुलस रही, 
बुढ़ापा,बेसहारा मर रही है,
लाश मिलती है,तो वारिस नहीं,
कहाँ मुकदमा चलेगा,हूँ ,बताओ? 
किसको खोजोगे,किससे माँग करोगे? 
कौन ठीक करेगा? 
वो जिसे तुमने ठिका दिया है सब कुछ का, 
चलो कम से कम ख़ुद पर खूब हँस लो अब, 
तुम आज भी अंधे हो,
युग चांद पर चमकना चाहता है,
लेकिन तुम अभी भी धरती में अपनी लकीर खींचने में लगे हो। 
खैर,तुमको दिखे ही कहाँ हैं, 
अलग हुए कंकड़ो के खालीपन।
वो तो मैंने देखा तो मेरा मसला था। 
                  ✍ mahfuz मी पोस्ट
mahfuzmonu5015

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