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मेरे दिल की आरज़ू है तेरे रूप को निहारूं दर्पण बना

मेरे दिल की आरज़ू है तेरे रूप को निहारूं
दर्पण बनाके तुझको सच झूठ को सवारूं 
उपहार ये अनूठा तूने ही तो दिया है 
इस ज़िंदगी को भगवन चरणों में तेरे वारूं
मेरे दिल की आरज़ू........
मुझसा न कोई जग में ढूंढोगे तो मिलेगा
तूं सच है मैं हूं झूठा बोलो किसे पुकारूं
जैसा भी हूं शरण में आता ज़रूर हूं
अच्छा नहीं लगेगा तुझको कभी मैं हारूं
मेरे दिल की आरज़ू.........
माना पतित बहुत हूं पर तुम पतित के पावन
एक बात तो बतादे खुद को कहां सुधारूं
तुझसा न कोई ज्ञानी अभिमानी कहां मुझसा
तेरे चरण कमल का "सूर्य" आरती उतारूं
मेरे दिल की आरज़ू........

©R K Mishra " सूर्य "
  #आरज़ू  Mili Saha PUJA UDESHI Utkrisht Kalakaari एक अजनबी भारत सोनी _इलेक्ट्रिशियन