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दिल का बोझ तो कभी भी कम होता ही नहीं मैं

दिल  का  बोझ  तो  कभी  भी  कम  होता  ही  नहीं
मैं  पत्थर  दिल  इन्सान हूँ  क्या  कभी  रोता ही नहीं,
मेरे  भी  अरमान   हैं  मेरे  अपनें   कुछ  जज़्बात  हैं 
कहने  को  सब अपनें  हैं पर  कोई भी  नहीं साथ है,
बच्चों को फुर्सत ही नहीं वो तो अब बहुत बड़े हो गए
कल तक जो झुकते थे सामने  वे तन के  खड़े हो गए,
माँ-बाप  भी  रहे  नहीं  ना  किस्मत  साथ  निभाता है
किस कंधे पर सर रख रोऊँ  समझ  में  नहीं  आता है। Challenge 18 - 'किस कंधे पर सर रख रोऊँ'
8 पंक्तियों की रचना कर प्रतियोगिता में भाग लें।
विशेष:- आवश्यक नियम पिन पोस्ट के कैप्शन में पढ़ें।
🌠
आज के अत्यंत ही रोचक विषय 'किस कंधे पर सर रख रोऊँ' पर रचना कीजिये। जिसमें एक वृद्ध मनुष्य कहता है कि हर कोई अपने-अपने कार्य में लगा है किसीको समय कहाँ है जो मेरी व्यथा सुने मैं स्वयं में ही घुट रहा हूँ।
#yqbaba #yqdidi #tmkosh 
📢🔊
यदि आप अन्य कवियों की रचना व उनकी लेखन शैली को पढ़ते हैं तो आपकी लेखनी में समय की आवश्यकता के अनुरूप धार आएगी जो आपकी रचना को सभी से अलग करेगी।
दिल  का  बोझ  तो  कभी  भी  कम  होता  ही  नहीं
मैं  पत्थर  दिल  इन्सान हूँ  क्या  कभी  रोता ही नहीं,
मेरे  भी  अरमान   हैं  मेरे  अपनें   कुछ  जज़्बात  हैं 
कहने  को  सब अपनें  हैं पर  कोई भी  नहीं साथ है,
बच्चों को फुर्सत ही नहीं वो तो अब बहुत बड़े हो गए
कल तक जो झुकते थे सामने  वे तन के  खड़े हो गए,
माँ-बाप  भी  रहे  नहीं  ना  किस्मत  साथ  निभाता है
किस कंधे पर सर रख रोऊँ  समझ  में  नहीं  आता है। Challenge 18 - 'किस कंधे पर सर रख रोऊँ'
8 पंक्तियों की रचना कर प्रतियोगिता में भाग लें।
विशेष:- आवश्यक नियम पिन पोस्ट के कैप्शन में पढ़ें।
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आज के अत्यंत ही रोचक विषय 'किस कंधे पर सर रख रोऊँ' पर रचना कीजिये। जिसमें एक वृद्ध मनुष्य कहता है कि हर कोई अपने-अपने कार्य में लगा है किसीको समय कहाँ है जो मेरी व्यथा सुने मैं स्वयं में ही घुट रहा हूँ।
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यदि आप अन्य कवियों की रचना व उनकी लेखन शैली को पढ़ते हैं तो आपकी लेखनी में समय की आवश्यकता के अनुरूप धार आएगी जो आपकी रचना को सभी से अलग करेगी।