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कम उमरी थी तजुर्बा कम था। जैसे की इश्क का बचपन था।

कम उमरी थी तजुर्बा कम था।
जैसे की इश्क का बचपन था।
गली से गुजरु और वो दिख जाए,
कसम से, तब इतने का ही मन था।
वो दिखे, देखे और मुस्कुरा भी दे,
उस समय, इतना क्या कम था।
खुदा जाने उसके मन में क्या था,
पर अब लगता है की, मैं ना समझ था।

©शैलेन्द्र शैनी
  #प्यार और धोखा