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मैं पागल था,झूठा था, मक्कार था! फिर भी उसको मुझसे

मैं पागल था,झूठा था, मक्कार था!
फिर भी उसको मुझसे प्यार था!!
वो कहती थी, मैं शैतानी बहुत करता हूं!
फिर भी मेरी शैतानी से उसे प्यार था!!
मैं हजार बातें अच्छी कह दूं,
हर बात में कमियां निकाल देती थी!
मैं अब भी उसके सामने नादान था!!

अब वो सिर्फ मेरी यादों में है , मेरे पास नही है!
वो मिलेगी मुझे, अब कोई आस नही है!!
कुछ ही दिन हुए वो किसी और की हो गई!
दुःख तो है मगर कोई एतराज़ नही है!!

गई, पर बहुत कुछ दे गई!
जीने का सलीका और मोहब्बत कि सीख दे गई!!
अब कोई गुड़िया मुझसे नही टूटती है!
वो अपनी गुड़िया संभालने कि तरकीब दे गई!!

धर्मेन्द्र कुमार यादव

©dharmendra kumar yadav
  मैं पागल था

मैं पागल था #कविता

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