किस्सा-ए- मुहब्बत खुलेआम हो रहा है। चर्चा का बाजार सरेआम हो रहा है।। कल तक जो सीने में कैद था.... अब वो जुबां पर एहतराम हो रहा है।। एहतियातन कुछ पल समेट लिया मुट्ठी में... वर्ना यहां निगाहों से कत्लेआम हो रहा है।। जल्द हीं गूंजेगी शहनाई महफ़िल में... क्योंकि शाम से ही जश्न-ए-जाम हो रहा है।। क़ुर्बतों का दौर अब खत्म हुआ "विशाल" बहारों को लाने का इंतजाम हो रहा है।। किस्सा-ए- मुहब्बत खुलेआम हो रहा है। चर्चा का बाजार सरेआम हो रहा है।। Copyright @ दीपक विशाल किस्सा-ए-मुहब्बत