यादे इबादतें-इश्क-की परछाई भी अजीब है नाज़िम, किसी को मोहब्बत तो किसी को गम नसीब है। खाते तो सभी हैं कसमे निभाने की, कोई निभा जाता है कोई मुकर जाता है । मुकरे-बेबफाई गर हासिल हुई किसी को, कोई रो जाता है कोई संभाल जाता है, संभाले गर तो कामयाबी नसीब होती है। वरना न-कामयाबी में रुसवाई होती है, रुसवाई में ज़िन्दगी फिर तमाम होती है। तमाम-ए-ज़िन्दगी अश्को के नाम होती है, और अश्को से इश्क-ए-परछाई याद आती है । और जब इश्क-ए-परछाई याद आती है, तब हर घडी नाज़िम तोड़ जाती है ।। #याद #रुसवाई #टूटना #नाकामी #khnazim