वो थी शुरुआत, हमारे साक्षर बनने की एक गुमनाम, नाम से हस्ताक्षर बनने की। ©Krishna Awasthi एक धूल पटी कार पर उँगलियों से, वर्णों के समूह को बनाता, कभी कुछ लिखता तो कभी कुछ मिटाता कभी अखबार में आई खबर घर में सब को पढ़कर सुनाता विद्यालय के कक्ष में शिक्षक के आते ही पढ़ने की इच्छा हरदम कुछ नया लिखने और सबसे आगे बढ़ने की इच्छा कभी मिली जो, पुरानी दादा की डायरी, तो कुछ भी लिखना, हाँ सब को सुनाकर, सबसे अलग दिखना,