Nojoto: Largest Storytelling Platform

मुसफीखाने में मेरे मुसाफिर कई आये रिश्तों के गुलदस

मुसफीखाने में मेरे मुसाफिर कई आये
रिश्तों के गुलदस्तों का तोहफा भी लाये
जरूरत पूरी कर खाली छोड़ गए कमरे
अब बची तन्हाई संग बचे यादों के साये।

सच है एक दिन सभी बस छोड़ जाते है
दिल के कोमल दर्पण को  तोड़ जाते है
समझ न सका बस उनकी फितरत को
सब काम निकलने पर मुंह मोड़ जाते है।

पास मेरे आया बन कर हर कोई सच्चा
मान लिया मैंने भी उसे बिन सोचे अच्छा
असल दुनियादारी की समझ न थी मुझमें
समझ में अब आया था मैं ही अभी कच्चा।

जो होना था हो चुका अब गम न करता हूँ
छोड़ गए है जब चलो धीरज भी धरता हूँ
पर बचा नही वैसा जो पहले था जैसा
बस खुद को खो करके पल पल मरता हूँ।

©SHASHIKANT
  #SAD #Shashikant_Verma