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कविता "अब इंसान पैदा नहीं होते" ****************

कविता

"अब इंसान पैदा नहीं होते"

*********************************

अब इस दुनिया में
पैदा होते हैं
हिंदू, मुसलमान, सिख, ईसाई, 
यहूदी, जैन, बौद्ध 
जो जकड़े होते हैं 
जन्म से ही एक कटीले खोल में

नहीं निकल पाते हैं
लाख हाथ- पैर मारने के बावजूद
क्योंकि
उनके आस- पास
धर्मांध प्राणियों का
होता है जमावड़ा
जो हमेशा बताता है
स्वर्ग और नरक जाने का सहज मार्ग  

करते हैं खून
कभी जात के नाम पर
कभी धर्म के नाम पर
कभी क्षेत्र के नाम पर
तो कभी रंग-भेद के नाम पर
पिपासा होती है
उनके अंदर 
एक दूसरे का खून पीने की

जंगली जानवरों की तरह
करते हैं अवसर की तलाश
मौका मिलते ही
एक दूसरे को चीर देने का
देखते रहते हैं ख्वाब
उनकी आँखें हमेशा 
होती हैं रक्तरंजित

मानवता, दया, क्षमा, करुणा
ये तमाम मौलिक शब्द
खो जाते हैं जन्म से ही
जो साबित करता है
कि इंसानों से
अब इंसान पैदा नहीं होते


✍.............. 
©®  जितेन्द्र कुमार 'चंचल'
         हसपुरा, औरंगाबाद
                   बिहार

©जितेन्द्र कुमार चंचल कविता
अब इंसान पैदा नहीं होते

#Love
कविता

"अब इंसान पैदा नहीं होते"

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अब इस दुनिया में
पैदा होते हैं
हिंदू, मुसलमान, सिख, ईसाई, 
यहूदी, जैन, बौद्ध 
जो जकड़े होते हैं 
जन्म से ही एक कटीले खोल में

नहीं निकल पाते हैं
लाख हाथ- पैर मारने के बावजूद
क्योंकि
उनके आस- पास
धर्मांध प्राणियों का
होता है जमावड़ा
जो हमेशा बताता है
स्वर्ग और नरक जाने का सहज मार्ग  

करते हैं खून
कभी जात के नाम पर
कभी धर्म के नाम पर
कभी क्षेत्र के नाम पर
तो कभी रंग-भेद के नाम पर
पिपासा होती है
उनके अंदर 
एक दूसरे का खून पीने की

जंगली जानवरों की तरह
करते हैं अवसर की तलाश
मौका मिलते ही
एक दूसरे को चीर देने का
देखते रहते हैं ख्वाब
उनकी आँखें हमेशा 
होती हैं रक्तरंजित

मानवता, दया, क्षमा, करुणा
ये तमाम मौलिक शब्द
खो जाते हैं जन्म से ही
जो साबित करता है
कि इंसानों से
अब इंसान पैदा नहीं होते


✍.............. 
©®  जितेन्द्र कुमार 'चंचल'
         हसपुरा, औरंगाबाद
                   बिहार

©जितेन्द्र कुमार चंचल कविता
अब इंसान पैदा नहीं होते

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