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उर्वी ! अकेली नही

उर्वी !                                 
अकेली नही हो तुम अभी
और कभी नही
जैसे सूखे पत्ते टहनियों से
टूटकर बिखर जाते है 
ठीक वैसे ही अभी 
और खालीपन है कहीं;
शेष पीछे छोड़ जब कभी
आगे बढ़ोगे तुम
तो शायद वो तुम नही
तुम्हारा अकेलापन हो;
इन बेरहम सवाल से 
जब निकलोगे तुम
तो पूछना खुद से कभी
की सीपियाँ समंदर में
यूं ही नही तैरा करती
वो अपने अंदर 
रखती हैं कई मोतियाँ
पर शायद उस यकीन को
न पाओगे तुम;
हर कोना ज़हन का  
उसे ढूंढता है जो
यहीं कहीं
की आओगे तुम
पर शायद कभी नही;
रियायतें मिली नही फिर
उन खूबियों को
जिन्हे मिलनी चाहिए थी कभी
यकीनन
पर शायद वो तुम नही,
तो इन सूखी टहनियों में
क्या शाखें आयेंगी कभी
इतनी की लचीलापन हो
फिर वो सारे दुःख 
सिमट जाएं एक जगह
जिन्हे कभी याद न रखोगे तुम
पर शायद ये मुमकिन नही
कभी भी कहीं भी
और हां
अकेली नही हो तुम अभी
और कभी नही!

©Umesh Kushwaha #उर्वी
उर्वी !                                 
अकेली नही हो तुम अभी
और कभी नही
जैसे सूखे पत्ते टहनियों से
टूटकर बिखर जाते है 
ठीक वैसे ही अभी 
और खालीपन है कहीं;
शेष पीछे छोड़ जब कभी
आगे बढ़ोगे तुम
तो शायद वो तुम नही
तुम्हारा अकेलापन हो;
इन बेरहम सवाल से 
जब निकलोगे तुम
तो पूछना खुद से कभी
की सीपियाँ समंदर में
यूं ही नही तैरा करती
वो अपने अंदर 
रखती हैं कई मोतियाँ
पर शायद उस यकीन को
न पाओगे तुम;
हर कोना ज़हन का  
उसे ढूंढता है जो
यहीं कहीं
की आओगे तुम
पर शायद कभी नही;
रियायतें मिली नही फिर
उन खूबियों को
जिन्हे मिलनी चाहिए थी कभी
यकीनन
पर शायद वो तुम नही,
तो इन सूखी टहनियों में
क्या शाखें आयेंगी कभी
इतनी की लचीलापन हो
फिर वो सारे दुःख 
सिमट जाएं एक जगह
जिन्हे कभी याद न रखोगे तुम
पर शायद ये मुमकिन नही
कभी भी कहीं भी
और हां
अकेली नही हो तुम अभी
और कभी नही!

©Umesh Kushwaha #उर्वी