गोरी के कजरा पर बदरा ऐसा आज लुभाए। बीच डगर में राह रोक के जी भर अंग भींगाए। छतरी की औकात भला क्या कैसे रोके बारिश, बचती-बचाती हौले-हौले नाजुक कदम बढ़ाए। ……. सतीश मापतपुरी ©Satish Mapatpuri छतरी