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कलम की धुरी से रेखाओं को मिलाते हुये

कलम की धुरी से 
         रेखाओं को मिलाते हुये 
               वो मुक्तहस्त महारत 
                      अक्श मेरा बनाता है....

कभी श्वेतपटल पर  
     कभी अंतःकरण पर 
                निमग्न होकर .. 
        नयन नक्श उकेरता हुआ
    कुछ सोचता हुआ बढ़ते जाता है.. 
        चित्त की छवि को 
         स्व-भावों के सादृश में पटल पर 
              गढ़ते जाता है.... 

कभी रुकता, क्षुब्ध होता 
        मन टटोल त्रुटियां सुधारकर 
            फिर कोई गीत गुनगुनाता है....

कभी केश कर्ण भृकुटि 
बनाते हुये 
लबों पे कलम दबाता है....

         रेखाओं को रेखाओं से
                  मिलाते हुए.... 
                     स्याह फैलाते हुये....
              श्वेत श्याम रंग रंग जाता है... 
      इस तरह वो धीर गंभीर रचियेता 
            निज लक्ष्य की ओर 
                    बढ़ते चला जाता  है..  

     वो शब्दकार होकर भी 
            चित्रकार बन जाता है.... 
          कलम की ताकत से 
             चित्र विचित्र गढ़ जाता है...

©अज्ञात
  #चित्रकार