चला दिया है किसने खंज़र यकीन पर, अब घास क्या उगेगा बंजर जमीन पर, जिस डाल पे बैठा उसी को काट रहा है, आती है तरस मुझको ऐसे जहीन पर, खाने के दाँत और दिखाने को और हैं, कैसे करे भरोसा कोई इस मकीन पर, पाखंड बोलता रहा मज़हब के नाम पे, है आदमी फँसा हुआ तेरह या तीन पर, रोटी खरीद लाया है ईमान बेचकर, पड़ती है भूख भारी ऐसे ही दीन पर, अज्ञानता के जह्र को फन में समेटकर, सड़को पे आ गए हैं सँपेरे की बीन पर, बेशक उड़ो समेट कर पंखों में आसमान, सबको सनद रहे है ठिकाना जमीन पर, संदेश बाबा भारती का याद है 'गुंजन', उठ जाए न भरोसा जहाँ में यतीम पर, - शशि भूषण मिश्र 'गुंजन' चेन्नई तमिलनाडु ©Shashi Bhushan Mishra #चला दिया है किसने#