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कितनी मर्तबा! कितनी मर्तबा! तुम मेरी गज़ल में अपन

कितनी मर्तबा! 
कितनी मर्तबा! तुम मेरी गज़ल में अपना नाम ढूंढोगी।
अल्फाज़ ही समझ लो तुम,जज़्बात कहां ढूंढोगी।
मुनासिब नहीं है तुम्हारा मेरे यूं करीब आना,
मुनासिब नहीं है तुम्हारा मेरे यूं करीब आना,
किसी ने देख लिया तो छुपने की जगह कहां ढूंढोगी।
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लहज़ा बदल लेते है हम बात करते हुए,
फिर तुम उसमें मेरी नज़ाकत कहां ढूंढोगी।
और सुना है...
सुना है! बेशुमार आशिक़ है गली में तुम्हारे,
फिर उनमें तुम मेरा निशां कहां ढूंढोगी।
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तस्लीम हो या हो इबादत खुदा की,
तुम्हारी ताबीर कहां ढूंढोगी,
ये तो तसव्वुर है महज़ तुम्हारा,
तुम मेरे ज़हन में अपनी तस्वीर कहां ढूंढोगी।
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लिख तो चुका हूं तुम्हें अपना मैं,
और कितनी मर्तबा!
 तुम मेरी गज़ल में अपना नाम ढूंढोगी।
 
कितनी मर्तबा!!!

©Versha Kashyap 
  कितनी मर्तबा!!
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Pramodini mohapatra IshQparast {Offical} ViNod Sijwali Rajat bhardwaj Ranaa Sachin Banwal

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