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कोई उलझन दिमाग में यूं खटकी जा रही है,गुल कोई भौंर

कोई उलझन दिमाग में यूं खटकी जा रही है,गुल कोई भौंरों विच यूं सिसकी जा रही है।अजब है दुनियां,अजब इसकी दास्तां,संग पा बहारों की कोई कली यूं खिलती जा रही है।गर्दिश तूफानों की देखो! क्या क्या जुल्म ढहाए है,कर मजबूत इरादों को यूं आगे बढ़ती जा रही है।ताकत क्या लहरों की जो मंजिल यूं बहा ले जाए,तोड़ सब बंदिशें,कोई चाहत यूं पनपती जा रही है।है चट्टानों सी अडिग खड़े रास्ते पर ,ले हौसलों की उड़ान यूं चलती जा रही है।लिए सूर्य सी चमक आंखों में,दमक अपनी जहां में यूं बिखेरती जा रही है।आए अनेकों जलजले उसके कदमों तले,दरकिनार कर सब कठिनाइयों को यूं सहती जा रही है।बदले मौसम, बदल गई दुनियां,अनजान सी डगर में भी यूं हंसती जा रही है।...written by (संतोष वर्मा)आजमगढ़ वाले...खुद की जुबानी...... यूं.........
कोई उलझन दिमाग में यूं खटकी जा रही है,गुल कोई भौंरों विच यूं सिसकी जा रही है।अजब है दुनियां,अजब इसकी दास्तां,संग पा बहारों की कोई कली यूं खिलती जा रही है।गर्दिश तूफानों की देखो! क्या क्या जुल्म ढहाए है,कर मजबूत इरादों को यूं आगे बढ़ती जा रही है।ताकत क्या लहरों की जो मंजिल यूं बहा ले जाए,तोड़ सब बंदिशें,कोई चाहत यूं पनपती जा रही है।है चट्टानों सी अडिग खड़े रास्ते पर ,ले हौसलों की उड़ान यूं चलती जा रही है।लिए सूर्य सी चमक आंखों में,दमक अपनी जहां में यूं बिखेरती जा रही है।आए अनेकों जलजले उसके कदमों तले,दरकिनार कर सब कठिनाइयों को यूं सहती जा रही है।बदले मौसम, बदल गई दुनियां,अनजान सी डगर में भी यूं हंसती जा रही है।...written by (संतोष वर्मा)आजमगढ़ वाले...खुद की जुबानी...... यूं.........

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