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ग़ज़ल लिख कर बहाने से मैं तुमको याद करता हूँ, कभी

ग़ज़ल लिख कर बहाने से मैं तुमको याद करता हूँ,
कभी  फ़रियाद  करता  हूँ  कभी  इरशाद करता हूँ اا

ज़ुल्म मुझ पर हक़ीक़त है मैं तुमको पा नहीं सकता,
ख़ुदी  को  खुद  के हाथों से मैं खुद बरबाद करता हूँ اا

नहीं  हो  अंजुमन में तुम न  कोई  राग बुलबुल का,
न  शीरीं  उन  लबों  की है न वो फ़राग़  सुम्बुल का اا

हाँ  कुछ  कर  नहीं  सकते  करे ये क्या आज़ुर्दा दिल,
ग़ुंचा-ए-गुल  को  नहीं  करते  सवाल  तवक्कुल का اا

तुमको  ये  गिला है के मैं सब  कुछ  भूल  नहीं जाता,
चलो  हर  बंधन से  तुमको  मैं  पुर  आज़ाद करता हूँ اا

अब   ये   ज़ख्म   मेरे   हैं   सभी   यादें   भी  मेरी   हैं,
मैं अपना दिल  जला  कर  के  तुम्हें  आबाद  करता हूँ اا  अंजुमन - महफ़िल, शीरीं - मीठी, फ़राग़ - आराम, सुम्बुल - महबूब के ज़ुल्फ़, आज़ुर्दा - दर्द से भरा, ग़ुंचा-ए-गुल - कली तवक्कुल - भरोसा 





 #cinemagraph#yqquotes #yqtales #yqlife #yqlove #yqdidi#yqthoughts #yqdiary
ग़ज़ल लिख कर बहाने से मैं तुमको याद करता हूँ,
कभी  फ़रियाद  करता  हूँ  कभी  इरशाद करता हूँ اا

ज़ुल्म मुझ पर हक़ीक़त है मैं तुमको पा नहीं सकता,
ख़ुदी  को  खुद  के हाथों से मैं खुद बरबाद करता हूँ اا

नहीं  हो  अंजुमन में तुम न  कोई  राग बुलबुल का,
न  शीरीं  उन  लबों  की है न वो फ़राग़  सुम्बुल का اا

हाँ  कुछ  कर  नहीं  सकते  करे ये क्या आज़ुर्दा दिल,
ग़ुंचा-ए-गुल  को  नहीं  करते  सवाल  तवक्कुल का اا

तुमको  ये  गिला है के मैं सब  कुछ  भूल  नहीं जाता,
चलो  हर  बंधन से  तुमको  मैं  पुर  आज़ाद करता हूँ اا

अब   ये   ज़ख्म   मेरे   हैं   सभी   यादें   भी  मेरी   हैं,
मैं अपना दिल  जला  कर  के  तुम्हें  आबाद  करता हूँ اا  अंजुमन - महफ़िल, शीरीं - मीठी, फ़राग़ - आराम, सुम्बुल - महबूब के ज़ुल्फ़, आज़ुर्दा - दर्द से भरा, ग़ुंचा-ए-गुल - कली तवक्कुल - भरोसा 





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Abeer Saifi

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