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पूर्णिमा शरद् की है प्रेम रस बरसा रही चंद्रमा भी

पूर्णिमा शरद् की है 
प्रेम रस बरसा रही 
चंद्रमा भी तेजोमयी 
चांदनी फैला रही। 
रूप की अमावस्या 
सांवली हो निखर रही 
गौर वर्ण और भी 
गौरंगता बिखेर रही। 
कृष्ण की कला सोलह 
प्रेम से लबरेज है 
प्रेम रस में डूब रही 
गोपियां मगन हैं। 
रास रंग हो रहा 
बृज में आन्नद है 
देख देख छवि निराली 
"लक्ष्मी" मन मगन हैं। 
      लक्ष्मीनरेश

©Naresh Chandra पूर्णिमा शरद् की है 
प्रेम रस बरसा रही 
चंद्रमा भी तेजोमयी 
चांदनी फैला रही। 
रूप की अमावस्या 
सांवली हो निखर रही 
गौर वर्ण और भी 
गौरंगता बिखेर रही।
पूर्णिमा शरद् की है 
प्रेम रस बरसा रही 
चंद्रमा भी तेजोमयी 
चांदनी फैला रही। 
रूप की अमावस्या 
सांवली हो निखर रही 
गौर वर्ण और भी 
गौरंगता बिखेर रही। 
कृष्ण की कला सोलह 
प्रेम से लबरेज है 
प्रेम रस में डूब रही 
गोपियां मगन हैं। 
रास रंग हो रहा 
बृज में आन्नद है 
देख देख छवि निराली 
"लक्ष्मी" मन मगन हैं। 
      लक्ष्मीनरेश

©Naresh Chandra पूर्णिमा शरद् की है 
प्रेम रस बरसा रही 
चंद्रमा भी तेजोमयी 
चांदनी फैला रही। 
रूप की अमावस्या 
सांवली हो निखर रही 
गौर वर्ण और भी 
गौरंगता बिखेर रही।