देश बंटा राष्ट्र बंटे और बऺटा फ़िर परिवार भी और फ़िर कर दी एक ही आंगन में दीवार ऊंची खड़ी पहले पड़ोसी का घर ,घर के बाहर होते थे,लेकिन अब एक ही आंगन में हमारे पड़ोसी है रहते एकल परिवार की ना जाने कैसी ये आंधी चली जिसमे बिखर गया संयुक्त परिवार का सुख भी सांझा चूल्हा और सांझा गम ,खुशी होती थी अब अपने में है व्यस्त किसी को किसी की ख़बर नहीं वो दिन भी कितने सुहाने होते थे जब सब साथ रहते थे बस अब रह गया है सुना आंगन इनके ना मिलने से छोटी छोटी खुशियों के हर शाम यहां मेले लगते थे दिन भर की थकान उतरती जब एक दूसरे से मिलते थे याद नहीं की किस त्योहार पर सबको एक साथ देखा था इनके जाने के बाद आंगन में फ़िर वही सन्नाटा पसरा था। ©Sadhna Sarkar #desert #ankahe _jazbat