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ये कब ज़िद थी हमारी, सूखे पत्ते से उड़ते रहें हम

ये कब ज़िद थी 
हमारी, 
सूखे पत्ते से
उड़ते रहें हम.. 
इश्क़ जो हुआ... 
टूटे कुछ ख्वाब, 
चंद अरमान 
और... 
इस तरह बदल गए हम. 
किसी और से तो क्या 
ख़ुद से भी इश्क़ कर सके न हम

©हिमांशु Kulshreshtha
  बस यूँ ही...

बस यूँ ही... #शायरी

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