बंजारों सी फितरत मेरी, हरदम चलता जाता हूं मस्त पवन के झोंके सा मैं निसदिन बहता जाता हूं ऊपर अंबर नीचे धरती और नहीं कोई मेरा आज किसी बस्ती में तो कल जंगल में लगता डेरा ना घर है ना ठौर-ठिकाना, यूं ही बढ़ता जाता हूं ऐसा इक सैलानी हूं मैं जिस की ना कोई मंज़िल रहता हूं अपनी ही धुन में, क्या तनहाई क्या महफ़िल दिल का इकतारा लेकर बस गीत ख़ुशी के गाता हूं धूप रहे या छांव घनेरी, सहरा हो या गुलशन हो पांव नहीं रुकते हैं मेरे, पतझड़ हो या सावन हो ग़म के तूफ़ानों में भी लब पर मुस्कान सजाता हूं पत्थर पर सोता हूं पर बातें करता हूं तारों से प्यार गुलों से करता हूं पर बैर नहीं है ख़ारों से मुफलिस हूं पर दिल में शहज़ादों सा जश्न मनाता हूं - Charudatta_Kelkar ©Odysseus गीत बंजारों सी फितरत मेरी, हरदम चलता जाता हूं मस्त पवन के झोंके सा निसदिन मैं बहता जाता हूं ऊपर अंबर नीचे धरती और नहीं कोई मेरा आज किसी बस्ती में तो कल जंगल में लगता डेरा ना घर है ना ठौर-ठिकाना, यूं ही बढ़ता जाता हूं