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साथ तो है पर साथ नहीं है हाथ में अपने हाथ नहीं है

साथ तो है पर साथ नहीं है
हाथ में अपने हाथ नहीं है 

सामने तुम फिर भी है अकेले
वश में अपने हालात नहीं है

धागे उलझे सब सुलझा लेते
शायद वो जज़्बात नहीं है

दो किनारे संग संग बहते
मिलने के आसार नहीं है

नजर जहाँ तक रेत ही रेत 
हरी भरी सौगात नहीं है

भूले गर  कोई शाम हसीं वो
ऐसी भी कोई बात नहीं है

©Lalit Saxena
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