निकला है चाँद बादलों के पीछे पर आसमाँ साफ लगता है! ये मनचलों की दुनिया है यँहा अहले दिल तलाश लगता है!! ढूंढ लू एक गुलाब इस गुलजार ऐ दुनिया मे, पर काँटो से भरा वो भी एक ख्वाब लगता है!! ये बहारे चमन गुल कैसा खिलाये है! शब के बाद भी दिन में अनजानी सी रात लगता है!! अहले दिल की तलाश है इस मुसाफ़िर को जँहा में! पर वो भी मिले इस बदलती हवा में ये ख्वाब लगता है!! निकलता तो है हर रोज चाँद चांदनी-ऐ-शब में! पर वो भी इस कहकही सी दुनिया से अनजान लगता है!! #sjatt1401 #मुसाफ़िर की कलम